मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

मगर मुझको लौटा दो...

मगर मुझको लौटा दो...


जगजीत सिंह के इंतकाल की खबर सुनकर ऐसा लगा कि मैं अब कभी सो नहीं पाउंगा। मैं दावा नहीं कर रहा कि मैं  जगजीत साहब का बहुत बड़ा फैन हू..मुझे तो ये भी नहीं पता कि उनकी पहली गजल कौन सी थी..मैं इतना तो जानता हू कि अल्पआयु में ही उनकी पुत्र की मौंत हो गई..पर कैसे..नहीं पता। हां इतना जरुर पता है कि उनकी गजलों को अपनी आवाज देकर अमर बना देने वाली उनकी पत्नी चित्रा ने बेटे की मौत के बाद गाना छोड़ दिया।
 जगजीत सिंह के बारे में इस अल्पज्ञान के बावजूद अब मुझे रात में नींद नहीं आ पाएगी।
मेंरी यादाश्त खींचकर मुझे 13 साल पीछे ले जा रही है। तब मैं मिलिटरी स्कूल धौलपुर, राजस्थान में पढता था। तब मैने एक कहानी पढ़ी थी जिसकी पहली लाइन थी...


मुझसे जो प्यार किया तुमने तो क्या पाओगी..
मेरे जज्बात की आंधी में बिखर जाओगी...


हमारा स्कूल बोर्डिंग स्कूल था. तब मैने  7वीं क्लास पास की थी और 8वी की कक्षांए शुरु होने के पहले की छुट्टियों के दिन थे। महीने भर बाद  गर्मियों की छुट्टियां होने वाली थी. इस मौके का इस्तेमाल हम लोग अपने सीनियर्स से किताबों के लेन-देन और स्कूल में ही वीसीआर पर फिल्में देखने के लिए करते थे। ऐसे ही एक लेन-देन में मुझे एक पत्रिका मिली और मैने वो कहानी पढ़ी. . यानि गजल सम्रात जगजीत सिंह से वो मेरा पहला परिचय था.
 बाद में मैने कॉलेज के दिनों में जगजीत सिंह की ग़जलों को सुना पर जगजीत से दूरी बनी रही. 
वक्त बीता, गोरखपुर में कॉलेज की पढ़ाई के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के जर्नलिज्म कोर्स में दाखिला लिया। यही वो वक्त था जब जगजीत सिंह की गायकी को करीब से जानने और महसूस करने का मौका मिला...जब
रोजगार की चिंता के बीच किसी से एकतरफा प्यार ने मेरी नींदे उड़ा दी...दिन में क्लास के चलते दिन तो कट जाता था लेकिन किसी के ख्यालों में खोया-खोया रात भर नींद नहीं आती थी. तब जगजीत सिंह की गजलें मेरे लिए  संजीवनी बन कर आई।..


तुमकों देखा तो ये ख्याल आया...
झुकी-झुकी सी नजर बेकरार है कि नहीं...
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो..


रात भर इन गजलों को सुनता था..(तब तक मेरे पास मोबाईल आ गया था और मैने उनकी चंद गजलें मोबाईल में स्टोर कर रखी थी..) और अपने एक-तरफा प्यार में दूसरी तरफ के जवाब को सोचकर डूबता-उतराता था..उन लाईनों में ऐसा सुकून और शांति होती थी कि मेरी चिंता..दर्द..असमंजस..सब छू-मंतर हो जाता था और कुछ देर में ही मैं अपने एकतरफा प्यार के सपनों में खो जाता था..  करोड़ों प्रेमियों की तरह मुझे भी यही इल्म होता था कि जगजीत सिंह ने वो गजलें मेरे हालात पर गुनगुनाई है। उनकी गजलों की हर लाईन का एक मतलब होता था...और गायकी ऐसी कि जैसे हर एक लब्ज को प्यार की चाशनी में डुबा कर निकाला गया हो।प्यार करने वाले उनकी गजलों से खुद को आइडेंटीफाई करते है।
खैर, पत्रकारिता के पेशे में रहते हुए भी मुझे जगजीत साहब से कभी मिलने का मौका नहीं मिला और ना ही कभी उनके लाईव कंसर्ट में शामिल हो पाया। पर महसूस होता है कि जगजीत सिंह से साक्षात् मिलना हो तो उनकी गजलों को सुन लिजिए और महसूस होगा कि ..जगजीत साब यहीं है..यहीं है..यहीं है.....
हम फख्र कर सकते हैं कि जगजीत साब हमारे वक्त हुए..जगजीत साहब ने अपनी इस एक गजल में बचपन से जवानी तक का दर्द समेटा था...


..मगर मुझकों लौटा दो
बचपन का सावन..
वो कागज की कश्ती..
वो बारिश का पानी.... 

उनके जाने के बाद अब यही गजल सबकी जुबां पर है....इस उम्मीद में कि क्या पता उस बचपन के सावन के साथ..जगजीत सिंह भी लौट आए... और जब तक वो लौट नहीं आते तब तक मुझे सुकून से नींद नहीं आएगी।